“एक रास्ता है जिंदगी जो रुक गए वो कुछ नहीं, ये कदम किसी मुकाम पर जो थम गए तो कुछ नहीं।” ये शब्द कुछ लोगों के जीवन पर सटीक बैठते हैं क्योंकि वो अपने जीवन को एक यात्रा समझ कर जीता हैं। ऐसे ही जीवन की मिसाल हैं उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के छोटे से गांव के आईएएस ऑफिसर मनीष कुमार जो कि इससे पहले एक आईपीएस ऑफिसर और इससे भी पहले वो एक इंजीनियर थे। एक गरीब और छोटे गांव से ताल्लुक रखने के कारण मनीष जी ने कई आर्थिक संकट झेले लेकिन अपने लक्ष्य से कभी समझौता नहीं किया। यहां तक कि उन्हें नौकरी मिल जाने के बाद भी उन्होंने अपने लक्ष्य का पीछा नहीं छोड़ा। उनका लक्ष्य था आईएएस ऑफिसर बनना जो कि साल 2017 में जाकर पूरा हुआ। इससे पहले वो आईपीएस ऑफिसर थे और उससे पहले वो एक इंजीनियर थे लेकिन मनीष जी जिंदगी में हमेशा आगे ही बढ़ते रहे।
मनीष ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए न सिर्फ आर्थिक तंगी देखी बल्की उन्होंने ये लक्ष्य नौकरी करते हुए हासिल किया। कभी वो इंजीनियर की नौकरी करते तो कभी आईपीएस ऑफिसर बन जाने के बाद पद का दायित्व निभाते हुए समय निकालकर तैयारी किया करते। नौकरी के साथ तैयारी वो भी इतनी कठिन मानी जाने वाली परीक्षा की आसान नहीं होती। लेकिन इसके लिए मनीष जी ने स्मार्ट स्टडी का रास्ता अपनाया। मनीष के गांव में पढ़ाई लिखाई का वो माहौल नहीं था लेकिन फिर भी वो पढ़ने लिखने में शुरू से ही रुचि रखते और हमेशा अव्वल रहते। कक्षा दस और बारह दोनों में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा। इसके बाद उन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कदम रखा और बीटेक की डिग्री हासिल की।. यहां उनका प्रदर्शन बहुत ही अच्छा रहा और उन्होंने कॉलेज में टॉप किया। यहीं से कैम्पस प्लेसमेंट में उनका चयन हुआ और वे एक अच्छी कंपनी में नौकरी करने लगे।
पैसों की घर में जरूरत के चलते उन्होंने दो साल नौकरी की इसके बाद उनका मन फिर उन्हें अपने लक्ष्य की ओर खींच कर ले गया। नौकरी करने के बाद उन्होंने यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी। मनीष अपने कॉलेज के दिनों से ही परीक्षा की तैयारी किया करते थे। उन्होंने 2015 में परीक्षा दी और पहली ही बार में उन्होंने परीक्षा को पास भी कर लिया। लेकिन रैंक ज्यादा बेहतर न होने के कारण उनका सिलेक्शन इंडियन इंजीनियरिंग सर्विसेस के लिए हुआ। यहां वो संतुष्ट नहीं हुए और फिर परीक्षा में बैठे। दूसरी बार की रैंक ने उन्हें पहुंचाया आईपीएस पद पर। लेकिन यहां पर भी वो नहीं रुके। तीसरी बार जब उन्होंने परीक्षाा दी तो रैंक 84 बना जो कि आईएएस ऑफिसर के लिए मान्य होता है। और इस तरह आखिरकार 2017 में उन्होंने मेहनत और लगन से अपने लक्ष्य को हासिल कर ही लिया।
हालांकि मनीष जी ने पहली ही बार में परीक्षा पास कर ली थी लेकिन रैंक बेहतर नहीं थी। उन्होंने अपनी कमियों को समझा और उसे सुधारने के लिए उनसे जो हो सकता था उन्होंने किया। परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यार्थियों को भी मनीष यही सलाह देते हैं कि इस परीक्षा में यदि आप अपनी गलतियां पहचानना और उन्हें सुधारना भूल गए तो ये छोटी-छोटी गलतियां भी परीक्षा में भारी पड़ सकती हैं। दरअसल तैयारी तो हर कोई कर लेता है पर उस तैयारी में कहां कमी है यह हर कोई पता नहीं कर पाता और वहीं मात खाता है। इसलिए बेहतर होगा आप बिलकुल परीक्षा जैसे माहौल में एग्जाम दें और जहां-जहां अटकें, वहां अपनी कमियों को पकड़ते हुए दूर करें।
Input: Daily Bihar