7 अक्टूबर गुरुवार से नवरात्रि की शुरुआत हो रही है। इस अवसर पर हम आपको बता रहे हैं गोपालगंज स्थित थावे भवानी मंदिर के बारे में। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां करीब 400 साल पहले ही देवी को पिंडी रूप में स्थापित किया गया था और तब से ही उनका पूजन किया जा रहा है। बाद में देवी की प्रतिमा स्थापित की गई। साथ ही बगल में ही देवी के सच्चे भक्त रहषू का भी मंदिर है।
मान्यता है कि श्रद्धालुओं को देवी दर्शन के बाद भक्त रहषू के मंदिर में भी जाना होता है। वरना देवी की पूजा अधूरी मानी जाती है। मंदिर के पुजारी के सुरेश पांडेय अनुसार, यहां भक्त रहषू की पुकार पर देवी कामाख्या से थावे पहुंची थीं।
थावे मंदिर राजधानी पटना से करीब 180 KM दूरी पर बसे गोपालगंज जिले के थावे में स्थित है। मंदिर के पुजारी सुरेश पांडेय बताते हैं कि पूर्वजों के अनुसार, इस मंदिर का इतिहास भक्त रहषू और चेरो वंश के राजा मनन सेन से जुड़ी हुई है। यहां काफी साल पहले चेरो वंश के राजा मनन सेन का साम्राज्य हुआ करता था। यहीं रहषू थावे जंगल में रहता था। वह जंगल में उपजे खरपतवार को जमाकर उस पर बाघ को चलाकर चावल पैदा करता था और अपने परिवार का भरण पोषण करता था।
राजा के कहने पर भक्त रहषू ने बुलाया था मां भवानी को
पुजारी सुरेश पांडेय कहते हैं कि इस मंदिर से एक पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। एक बार यहां अकाल पड़ा। लोग खाने को तरसने लगे। पर रहषू चावल पैदा कर लोगों को दे रहे थे। जब यह बात राजा मनन सेन तक पहुंची तो उन्होंने रहषू को दरबार में बुलाया और चावल पैदा करने से संबंधित बात पूछी। रहषु ने बताया कि यह सब कुछ मां भवानी की कृपा से हो रहा है। राजा ने कहा- ‘मैं भी तो मां का भक्त हूं, तुम मां को बुलाओ’।
भक्त रहषू ने कई बार राजा को यह बताया कि अगर मां यहां आई तो राज्य बर्बाद हो जाएगा, पर राजा नहीं माने। मजबूर रहषू ने मां को पुकारा और देवी आ गई। रहषू के मस्तक को विभाजित करते हुए मां ने अपना हाथ निकाल दर्शन दिए। इसके बाद ही राजा की मौत हो गई। तब से ही यहां देवी की पूजा हो रही है।
नवरात्रि के दौरान कपाट बंद नहीं होता मंदिर का
अति प्राचीन दुर्गा मंदिर होने की वजह से यह भक्ताें की श्रद्धा का बड़ा केंद्र माना जाता है। नवरात्रि में यहां मेला लगता है और झारखंड, यूपी, बंगाल और नेपाल से हजारों भक्त मां के दर्शन के लिए आते हैं। कहा जाता है कि यहां मां भगवती भक्त की पुकार पर प्रकट हुई थीं। यहां पूजा-अर्चना करने से भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण होती है। थावे देवी को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्त पुकारते हैं। ऐसे तो साल भर यहां मां के भक्त आते हैं।
शारदीय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि के समय यहां श्रद्धालुओं की काफी भीड़ लगती है। इसके कुछ ही दूरी पर रहषू भगत का भी मंदिर है। अन्य दिनों में रात्रि की आरती के बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। नवरात्रि के दौरान कपाट बंद नहीं होता है।
input:daily bihar