देश में बाबाधाम एकमात्र ऐसा तीर्थ जहां एक साथ हैं ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ, शुरुआत काली पूजा से, अंत में बाबा की पूजा, शक्ति की पूजा के बाद बाबा की पूजा होती है। शिवरात्रि में मां पर सिंदूर भी चढ़ता है।मंदिर बाबा बैद्यनाथ का है, लेकिन मां का प्रताप ऐसा कि प्रतिदिन सुबह होने वाली पूजा और शाम को होने वाले शृंगार में बाबा बैद्यनाथ से पहले उनके सामने स्थित माता काली मंदिर का पट खोलकर पूजा-शृंगार होता है।
देवघर में माता को अदृश्य मानकर पूजा होती है, क्योंकि माना जाता है कि सतयुग में माता सती का हृदय देवघर में गिरा और त्रेतायुग में भगवान विष्णु बैजू बनकर उसी स्थान पर खड़े हुए और रावण से शिवलिंग लेकर ठीक सती के हृदय स्थल पर स्थापित कर दिया। इसलिए शिव यहां दिखाई देते हैं और शक्ति नहीं। भाेलेनाथ की पूजा से पहले अरघा के एक किनारे कांचा जल, फूल चढ़ाकर पहले शक्ति की पूजा होती है।
बैद्यनाथ धाम को ‘हार्दपीठ’ भी कहा जाता है और उसकी मान्यता शक्तिपीठ के रूप में है. बैद्यनाथधाम के एक पुजारी बताते हैं कि पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जब राजा दक्ष ने अपने यज्ञ में शिव आमंत्रित नहीं किया, तो सती बिना शिव की अनुमति लेकर मायके पहुंच गई और पिता द्वारा शिव का अपमान किए जाने के कारण उन्हें मृत्यु का वरण किया. सती की मृत्यु सूचना पाकर भगवान शिव आक्रोशित हो गए और सती का शव को कंधे पर लेकर घूमने लगे.
देवताओं की प्रार्थना पर उन्मत्त शिव को शांत करने के लिए विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर को खंडित करने लगे. सती के अंग जिस-जिस स्थन पर गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाए. कहा जाता है कि यहां सती का हृदय गिरा था, जिस कारण यह स्थान ‘हार्दपीठ’ से भी जाना जाता है.
बैद्यनाथधाम में कांवड़ चढ़ाने का बहुत महत्व है. शिव भक्त सुल्तानगंज से उत्तर वाहिनी गंगा से जलभर कर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और भगवान का जलाभिषेक करते हैं. यहां आने वाले लोगों का मानना है कि औघड़दानी बाबा उनकी सभी मनोकामना पूरा करते हैं.
Input: Daily Bihar