दुर्गापूजा विशेष:उच्चैठ भगवती की प्रतिमा पर ‘मूर्ख’ कालिदास ने पोती थी कालिख, मिला विद्धान बनने का वरदान

मधुबनी. यूं तो मां दुर्गा की महिमा सब जानते हैं, यह भी एक तथ्य है कि हर सिद्धपीठ की अपनी अलग मान्यता है. आइये इसी कड़ी में बताते हैं बिहार के मधुबनी जिले के उच्चैठ में स्थित सिद्धपीठ माता उच्चैठ भगवती से जुड़ी कहानी. माना जाता है कि यहीं उच्चैट भगवती के आशीर्वाद से महामूर्ख कालिदास विद्धान कालीदास कहलाए. मान्यता है कि उच्चैठ मंदिर के पूरब दिशा में एक संस्कृत पाठशाला थी. मंदिर और पाठशाला के बीच एक विशाल नदी थी. मूर्ख कालिदास अपनी विदूषी पत्नी विद्योत्तमा से तिरस्कृत होकर मां भगवती के शरण में उच्चैठ आ गए और उस विद्यालय के आवासीय छात्रों के लिए खाना बनाने का काम करने लगे. विद्यालय के छात्र काली मंदिर में हर रोज शाम में दीप जलाते थे. लेकिन एक बार जब नदी में भयंकर बाढ़ आई तो पानी के तेज बहाव के चलते छात्रों ने काली मंदिर जाने से मना कर दिया.

 

छात्रों ने कालिदास को महामूर्ख जान उसे मंदिर में दीप जलाने का आदेश दिया. साथ ही, छात्रों ने मंदिर की कोई निशानी लाने को कहा, ताकि ये साबित हो सके कि वह मंदिर तक पहुंचा था. आदेश के बाद कालिदास दीप जलाने के लिए नदी के रास्ते किसी तरह मंदिर तक पहुंचे. दीप जला दिया और जब निशान छोड़ने की बात आई तो उन्होंने दीप की कालिख को हाथ पर लगाया और माता की प्रतिमा पर कालिख लेप दिया. कहते हैं कि इस घटना से मां काली को कालिदास पर दया आ गई और मां ने प्रकट होकर कालिदास से वरदान मांगने को कहा.

 

कालिदास ने अपनी पत्नी से तिरस्कृत होने की कहानी मां काली को सुनाई. कालिदास की कहानी सुनकर भगवती काली द्रवित हो गईं और उन्होंने कलिदास को वरदान दिया कि वो उस रात जितनी भी पुस्तकों को स्पर्श कर देंगे वो उन्हें याद हो जाएगी. कालिदास आवसीय परिसर लौटे और सारे छात्रों की सभी किताबों को उलट पलट दिया. इसके बाद कालिदास महामूर्ख से महान विद्वान कालिदास बन गए. इसके बाद उन्होंने अभिज्ञान शाकुंतलम, कुमार संभव, मेघदूत, रघुवंश महाकाव्य जैसी कालजयी रचनाएं रच डालीं

 

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पाठशाला के अवशेष अभी हैं उच्चैठ में आज भी वो नदी है. उस पाठशाला के अवशेष मंदिर के निकट मौजूद है. इतना ही नहीं, मंदिर परिसर में कालिदास के जीवन सम्बंधित चित्र अंकित हैं.

शिलाखंड पर बनी हैं देवी की मूर्ति उच्चैठ भगवती की मूर्ति काले शिलाखंड पर स्थित है. यहां पर मैया का आसन कमल हैऔर सिर्फ कंधे तक का ही हिस्सा नजर आता है. सिर नहीं होने की वजह से इन्हें छिन्नमस्तिका भगवती के नाम से भी भक्त जानते हैं.

 

श्मशान में साधना और बलि की प्रथा उच्चैठ भगवती मंदिर परिसर में ही एक श्मशान है जहां पर तंत्र साधना की जाती है. साथ ही यहां पर मुराद पूरी होने पर भक्तों की ओर से बलि प्रदान की जाती है. कहा जाता है कि, बलि प्रदान के दौरान निकलने वाले रक्त पर मक्खी नहीं भिनभिनाती है. साथ ही पास का तालाब रक्त से लाल हो जाता है.

 

भगवान राम भी कर चुके हैं मां छिन्नमस्तिका का दर्शन माना जाता है कि उच्चैठ में छिन्न मस्तिका मां दुर्गा स्वयं प्रादुर्भूत हैं और मां की दरबार में हाजिरी लगाने वालों की हर इच्छा पूरी होती है. माता के इस अवतार को नवम रूप सिद्घिदात्री और कामना पूर्ति दुर्गा के रूप में भी लोग पूजते हैं. मान्यता है कि भगवान श्री राम भी जनकपुर की यात्रा के समय उच्चैठ भगवती के दर्शन किये थे.

 

Input: Daily Bihar

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