आप चाहे छोटे गाँव में रहें या बड़े शहर में, छोटा मोटा व्यवसाय करते हों अथवा बड़ा बिजनेस। गरीब परिवार से हों या अमीर। यह सारी बातें मायने नहीं रखती हैं, बशर्ते आपके हौंसले बुलंद हों और कुछ कर दिखाने का जज़्बा आपके मन में हो।
इसी बात का एक बहुत सटीक उदाहरण पेश किया है, हिसार जिले के एक गाँव के युवा अशोक कुमार ने, जिनके पिताजी अपने गाँव में आटा चक्की चलाने का काम करते हैं, परन्तु अशोक न्यूक्लियर साइंटिस्ट बने और अपने पिता का गर्व से सर ऊंचा किया। इन्हें भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर में परमाणु वैज्ञानिक चुन लिया गया है। फिलहाल यह बात बहुत चर्चा का विषय बन गई है कि एक आटा पीसने वाले व्यक्ति का बेटा न्यूक्लियर साइंटिस्ट बन गया है।
अशोक कुमार (Ashok Kumar) हरियाणा के हिसार जिले के मुकलान नाम के गाँव में रहते हैं। इनके पिता आटा चक्की चलाते हैं, फिर भी इन्होंने अपने बैकग्राउंड और परिवार के व्यवसाय को ना देखते हुए यह शानदार उपलब्धि प्राप्त की है। हालांकि यह तो आप समझ ही सकते हैं कि एक आटा चक्की चलाने वाले व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कैसी रही होगी, लेकिन परिवार के कठिन हालातों से और कई संघर्षों से जुड़कर अशोक कुमार न्यूक्लियर साइंटिस्ट बने।
अशोक कुमार ने मार्च के महीने में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रूटमेंट का एग्जाम दिया था, जिसमें वे सफल रहे। आपको बता दें कि इनकी इस सफलता में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की कॉरपरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी स्कीम (CSR Scheme) का भी बड़ा योगदान रहा है। अशोक कुमार के पारिवारिक हालात अच्छे नहीं थे अतः उनके लिए यह स्कीम किसी वरदान से कम नहीं थी। इस विशेष योजना का फायदा होने बहुत मिला जिससे उनकी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो पाई। इसके अलावा पढ़ाई में इनके विद्यालय में पढ़ाने वाले गणित विषय के एक अध्यापक ने भी बहुत योगदान दिया था।
पहले इनका एग्जाम हुआ था और एग्जाम के बाद दिसम्बर माह में इंटरव्यू हुआ इंटरव्यू होने के बाद में ही सभी का परिणाम जारी किया गया था। जिसमें अशोक कुमार ने ऑल इंडिया स्तर पर दूसरी रैंक प्राप्त की है। भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर द्वारा 5 जनवरी को परिणाम घोषित किया गया था। अशोक कुमार कहते हैं कि इस परीक्षा के बाद पूरे भारत में से लगभग 30 छात्रों को चुना गया था, जिसमें से वह भी एक हैं। इनके पिताजी मांगेराम के पास एक एकड़ की भूमि है तथा चक्की पर आटा पीस कर वे अपने परिवार का गुज़ारा चलाते हैं।
अशोक की इस सफलता से उनके पिता और सारे परिवार वाले बहुत प्रसन्न हैं। इनके पिताजी ने बताया कि अशोक शुरुआत से ही पढ़ाई में काफ़ी होशियार थे। उनके परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी इसलिए पैसे ना होने की वज़ह से अशोक गाँव के सरकारी स्कूल में ही पढ़े लिखे। लेकिन उनमें इतनी काबिलियत थी कि वह आखिरकार इस मुकाम पर पहुँच गए, जिसे हर कोई व्यक्ति प्राप्त नहीं कर पाता है।
अशोक कुमार ने जो मुकाम हासिल किया है, उसका श्रेय वे अपनी माँ कलावती तथा पिता मांगेराम जी को देते हैं। उनके 3 भाई बहन है जिनमें 7 सबसे बड़े हैं। अशोक शुरू से ही डॉ. अब्दुल कलाम की तरह ही आदर्श वैज्ञानिक बनना चाहते थे। अशोक कुमार यह भी बताते हैं कि जब वह छोटे थे तब भी से ही अब्दुल कलाम को टेलीविजन और न्यूज़पेपर में देख कर और पढ़कर उन्हीं के जैसा बनना चाहते थे।
पहले अशोक ने उनके ही गाँव के एक सरकारी विद्यालय से 10वीं तक पढ़ाई की और फिर 11वीं तथा 12वीं कक्षा नॉनमेडिकल से प्राइवेट स्कूल से पूरी की। फिर इन्होंने मेकेनिकल से बीटेक किया। इसके बाद वैज्ञानिक बनने की चाहत रखने वाले अशोक ने मार्च 2020 में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर रिक्रूटमेंट का एग्जाम दिया। इसके बाद इंटरव्यू भी दिया और इंटरव्यू के बाद उनका रिजल्ट आया, जिस में सफलता प्राप्त करने के बाद अब मुंबई शहर में 16 जनवरी से ही उनका प्रशिक्षण शुरू हो जाएगा।
अशोक बताते हैं कि उनकी माँ कलावती एक हाउसवाइफ है और आठवीं कक्षा तक पढ़ी हुई है। जब वे छोटी कक्षा में पढ़ा करते थे तब करीब पांचवी कक्षा तक उनकी माँ उन्हें पढ़ाया करती थीं।
अशोक कुमार का कहना है कि इस कठिन परीक्षा में सफलता प्राप्त करने हेतु में रोजाना 12 घंटे तक पढ़ाई किया करते थे। इसके साथ ही टीवी से उन्होंने दूरी बनाए रखी थी। वे कहते हैं कि रोजाना न्यूज़पेपर तथा बुक्स वे ज़रूर पढ़ा करते थे। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जैसा मैं भी उनका मन विचलित होता था या वे परेशान होते थे तो उस समय डा. कलाम की जीवनी पढ़ा करते थे जिससे उनमें नई ऊर्जा का संचार हो जाता था।
अशोक ने वर्ष 2015 में जेईई मेन्स का एग्जाम पास कर लिया था इसके बाद फरीदाबाद के इंजीनियरिंग कॉलेज वायएमसी में इन्होंने एडमिशन लिया था। अशोक के घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी अतः फीस भरने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे, फिर उनके गाँव हिसार के गणित के एक शिक्षक रवि यादव ने जब अशोक की पढ़ने की ललक और काबिलियत को देखा तो उन्होंने ख़ुद उनकी 50 हज़ार रुपये की फीस भर दी।
सीएसआर योजना के अंतर्गत जर्मनी की सीमनस कंपनी ने देश में से 50 छात्रों को स्कॉलरशिप देने के लिए चुना था जिनमें अशोक कुमार का भी नाम आया था। यह चयन दसवीं बारहवीं तथा जेईई मेन्स के परिणामों के आधार पर किया गया था। इस योजना से अशोक को काफ़ी फायदा मिला जिससे उनके कॉलेज की पढ़ाई किताबों का ख़र्चा तथा हॉस्टल का ख़र्चा जैसे सभी कार्य कंपनी द्वारा ही भरे गए थे।
अशोक कुमार बताते हैं कि वर्ष 2019 में उनके इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी हो गई थी इसके बाद जब उन्हें परीक्षा की तैयारी करनी थी तो वह अपने घर से 2 वर्ष तक दूर ही रहे, क्योंकि उन्हें पढ़ने के लिए एकांत जगह चाहिए थी, तो वे किरमारा गाँव में अपनी मौसी के घर रहने लगे थे। उनकी मौसी के घर कम लोग थे आते हैं वहाँ उन्हें पढ़ने के लिए अच्छा माहौल मिल जाया करता था। वे प्रतिदिन 12 घंटे पढ़ाई किया करते थे। इसके अलावा अख़बार पढ़ते और इंटरनेट, टीवी इत्यादि से तो दूर ही रहते थे।
Input: Daily Bihar