पैर में चप्पल नहीं, चेहरे पर भाव नहीं, मगर हाथ में पद्मश्री मोदी सरकार के कारण ही आज उन लोगों को हम जान पाते हैं जो सच में पद्मश्री एक सच्चे हकदार है
राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में जब पद्म पुरुस्कारो का भव्य समारोह चल रहा था तभी राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की ओर एक व्यक्ति पद्म पुरूस्कार लेने के लिए आगे बढे जिन्होंने पैरो पर चप्पल तक नहीं पहनी हुई थी , सफ़ेद धोती और शर्ट में जब वे पद्म पुरुस्कार लेने पहुंचे तो दरबार हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा। ये व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि सड़को में फेरी लगाकर संतरे बेचने वाले कर्णाटक के हरकेला हजब्बा हैं
राष्ट्रपति ने कर्णाटक के हरकेला हजब्बा को सामाजिक कार्य के लिए पद्म श्री पुरूस्कार से सम्मानित किया, देश के सबसे प्रतिष्ठित सम्मानों से में एक पद्मश्री लेने वाले 65 वर्षीय मंगलुरु के रहने वाले हरकेला हजब्बा ने अपने पैसे से गांव से 35 किलोमीटर दूर बच्चो को शिक्षित करने के लिए स्कूल खोला है। हरकेला हजब्बा स्वयं शिक्षित नहीं हैं गांब में स्कूल न होने के कारन वे शिक्षित नहीं हो पाए थे। लेकिन इस दर्द को वे अब गांव के और बच्चो को झेलने नहीं देना चाहते थे और उन्होंने संघर्षो के बाद गांव के लिए स्कूल खोलने में उन्हें सफलता मिली
हर अकेला जैसे हमारे देश में हजारों लोग होंगे पर ऐसे लोगों को खोज कर सामने लाना और सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित करना हर सरकार के बस की बात नहीं होती यह काम वही कर सकता है जो जमीन से जुड़ा हो
Input: Daily Bihar