पटना : बिहारी मखाने को जीआई टैग बिहार मखाना से नहीं, बल्कि मिथिला मखाना नाम से मिलेगा। मखाने का नाम बदलने के लिए 11 सितंबर 2020 को बिहार कृषि विश्वविद्यालय के डीन एग्रीकल्चर आरआर सिंह ने जीआई (ज्योग्राफिकल इंडिकेटर्स) रजिस्ट्रार को पत्र भेजा था। इस पत्र के जरिए उन्होंने जीआई के लिए नाम बदलने का आग्रह किया था। तभी से मिथिला नाम से मखाने के जीआई की प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। 8 नवंबर को दिल्ली से आई केंद्रीय अधिकारियों की टीम ने मिथिला उत्पादकों से बात भी की थी। ऐसी संभावना है कि अगले साल के अंत तक मखाने को जीआई टैग मिल जाएगा। जीआई टैग की अधिसूचना जारी होने से पहले जर्नल में इसे प्रकाशित कर किसी भी प्रदेश, देश में आपत्ति लेगा। मखाने का जीआई टैग देने के मामले में किसी तरह की आपत्ति नहीं मिलने की स्थिति में नोटिफिकेशन किया जाएगा।
बिहार का विशिष्ट उत्पाद है मखाना
सूबे के कृषि मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मखाना बिहार का विशिष्ट उत्पाद है। राज्य सरकार द्वारा मिथिलांचल क्षेत्र के मखाने को वैश्वविक पहचान दिलाने के लिए जीआई टैग दिलवाने की कार्यवाही की जा रही है। मंत्री ने कहा कि मैंने बजट सत्र में आश्वासन दिया था कि राज्य सरकार के प्रयास से मखाने को मिथिला मखाने नाम से वैश्विक पहचान के लिए जीआई टैग जल्द मिलेगा। हाल में केंद्र सरकार के भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री के कंसल्टेटिव समूह के सदस्यों को टीम ने राज्य का भ्रमण किया
दुनिया के कुल मखाने का 80 प्रतिशत उत्पादन करता बिहार
सूबे के जल संसाधन और सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री संजय झा ने कहा कि दुनिया में उपजने वाले कुल मखाने का 80 प्रतिशत उत्पादन बिहार करता है। मखाना बिहार का कृषि उत्पाद ही नहीं, दुनिया में मिथिला की पहचान है। जो अब और समृद्ध होगी, जब से मिथिला मखाना नाम से जाना जाएगा। इसलिए मखाना को मिथिला मखाना के नाम से ही जीआई टैग मिला है। इसको लेकर किसी को कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। बता दें विदेशों में भी मखाने की खेती है। जापान, जर्मनी, कनाडा, बांग्लादेश और चीन में मखाना उपजाया जाता है। सबसे अधिक चीन में मखाने की होती है। हालांकि विश्व उत्पादन का सिर्फ 15 प्रतिशत उपज ही इतने देश मिलकर कर पाते हैं। बिहार में 6 हजार टन मखाने का उत्पादन किया जाता है। 100 ग्राम मखाने में 362 किलोग्राम कैलोरी होती है। 76.9 प्रतिशत कार्बोहाईड्रेट और 0.5 प्रतिशत मिनरल होता है।।
input:daily bihar