पिता वो छत है जो अपने बच्चों को हर मुसीबत की बारिश से बचाने की कोशिश में लगा रहता है. एक पिता खुद पर 100 मुश्किलें सह लेता है लेकिन अपने बच्चों पर कभी मुसीबत नहीं आने देता. इस बात के लाखों प्रमाण होंगे लेकिन इसका ताजा उदाहरण पेश किया है आज के दौर के एक पिता ने, जिसने अपने बेटे की ज़िंदगी बचाने के लिए खुद को वैज्ञानिक बना दिया और तैयार कर दी दवाई.
बेटे की जान बचाने में लगा हुआ है पिता
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार चीन के शु वेई नामक पिता अपने दो साल के बटे हाओयांग की जान बचाने के लिए हर वो प्रयास कर रहे हैं जो सुनने में ही असंभव लगता है. डॉक्टर्स के अनुसार हाओयांग बस कुछ महीने ही जिंदा रह पाएंगे लेकिन उसके डॉक्टर्स की बात को गलत साबित कर उसकी जान बचाने की हर वो कोशिश कर रहे हैं जिसके बारे में आम इंसान सोच भी नहीं सकता.
तैयार कर ली खुद की मेडिसिन लैब
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार हाओयांग मेनकेस सिंड्रोम नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हैं. ऐसे में एक बेबस पिता इधर उधर से धन जुटा कर अपने बेटे का इलाज कराने के अलावा और क्या ही कर सकता है लेकिन शु वेई एक अलग ही तरह के इंसान हैं. बेटे की जान बचाने के लिए उन्होंने अपने फ्लैट में ही मेडिसिन लैब बना दी है. इस लैब में वह हाओयांग के इलाज में काम आने वाली दवा बना रहे हैं.
क्या है मेनकेस सिंड्रोम!
मेनकेस सिंड्रोम एक ऐसा जेनेटिक डिसोडर है जिसमें शरीर में कॉपर बनना रुक जाता है. इस तरह पीड़ित के दिमाग व नर्वस सिस्टम के विकास में मुश्किल आने लगती है. ये बीमारी इतनी भयानक है कि इससे पीड़ित बच्चे 3 साल भी नहीं जी पाते. इस दुर्लभ बीमारी का शिकार एक लाख में कोई एक बच्चा होता है.
खुद ही बना ली दवा
30 साल के शु वेई के अनुसार उन्हें ये किसी भी हाल में करना था. उन्होंने इस बात पर सोचने में समय व्यर्थ नहीं किया कि वह लैब बनाएं या ना बनाएं. वेई अपने बेटे को देखकर भावुक हो जाते हैं. उनका कहना है कि भले ही हाओयांग चल या बोल नहीं सकता लेकिन उसके अंदर भी एक आत्मा है को भावनाओं को महसूस कर सकती है. वेई ने आगे बताया कि डॉक्टरों के अनुसार ये बीमारी लाइलाज है. उसे आराम पहुंचाने के लिए कॉपर हिस्टिडाइन दिया जाता है लेकिन लॉकडाउन की वजह से चीन में यह मिल नहीं रहा. ऐसी स्थिति में विदेश जाना संभव नहीं. ऐसे में वेई ने खुद ही फार्मास्यूटिकल्स पर रिसर्च किया और घर पर ही इस दवा को बनाना शुरू कर दिया. वेई के अनुसार उनके दोस्तों और परिजन को लगता था ये असंभव है इसीलिए वे सब वेई के इस फैसले के खिलाफ थे.
खुद हाई स्कूल तक पढ़े हैं वेई
वेई ने कोई उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की है. वह सिर्फ हाई स्कूल पास हैं. उन्होंने जब मेनकेस सिंड्रोम पर रिसर्च की तो उन्हें इस संबंध में जो भी ऑनलाइन दस्तावेज मिले वे सभी अंग्रेजी में थे. वेई को अंग्रेजी नहीं आती ऐसे में उन्होंने इन दस्तावेजों को समझने के लिए ट्रांसलेशन सॉफ्टवेयर की मदद ली. इसके बाद उन्हें कॉपर हिस्टिडाइन के बारे में मालूम हुआ. उपचार शुरू करने के दो हफ्ते बाद ब्लड टेस्ट के रिजल्ट सामान्य आए. इस संघर्ष में वेई अकेले थे क्यों कि उनकी पत्नी अपने बेटे हाओयांग की ऐसी हालत नहीं देख सकती थी इसलिए वह अपनी 5 साल की बेटी के साथ अलग रहने लगी. भले ही वेई अकेले थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने वो सब किया जिससे उनके बेटे की जान बच सके.
6 हफ्ते तक खुद को रखा लैब में कैद
शु वेई एक ऑनलाइन कारोबारी हैं. उनका कहना है कि वह नहीं चाहते कि उनका मासूम बेटा अपनी मौत का इंतजार करता रहे. वह भले ही सफल ना हो पाएं लेकिन वो अपने बेटे को जीने की एक उम्मीद देना चाहते हैं. वेई के इन प्रयासों को देखने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर की बायोटेक लैब वेक्टरबिल्डर ने इस बीमारी पर रिसर्च शुरू की है.
शु वेई के पिता जिआनहोंग अपने बेटे के संघर्ष के बाते में बताते हुए कहते हैं कि उनके बेटे ने इस दवा को बनाने के लिए खुद को 6 हफ्ते तक पूरी तरह से लैब में कैद कर लिया था. वेई ने सबसे पहले इस दवा का ट्रायल खरगोशों पर किया. इसके बाद उन्होंने खुद के शरीर में इसे इंजेक्ट की. साइड इफेक्ट न दिखने के बाद ही उन्होंने इसे अपने बेटे पर इस्तेमाल शुरू किया. वेई का कहना है कि कमर्शियल वैल्यू नहीं होने के कारण दवा बनाने वाली कंपनियों को इसे बनाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन उन्हें अपने बेटे की जान बचाने के लिए हर हाल में ये दवा चाहिए थी, ऐसे में उन्होंने किसी मदद का इंतजार किए बिना घर पर ही इस दवा को बना लिया.
Input: indiatimes