उत्तर प्रदेश के मवाना के एक व्यवसायी 67 वर्षीय सुखदेव सिंह का मानना है कि मशीन या उपकरण बनाने के लिए किसी का इंजीनियर होना ज़रूरी नहीं है। अगर किसी मशीन से हज़ारों लोगों को फायदा मिल रहा हो तो थोड़ा रिसर्च करके उसे बनाया जा सकता है। कृषि आधारित तकनीक में सिंह की गहरी दिलचस्पी है। उन्होंने तकनीक का इस्तेमाल करते हुए एक अनोखी मशीन बनाई है। इस मशीन के जरिए गोबर से लकड़ी बनाई जा सकती है।
मेरठ के पास सिंह की फैक्ट्री है जहाँ कृषि उपकरण बनाए जाते हैं। वह कहते हैं कि उनकी नज़र हमेशा इस क्षेत्र में होने वाली नई खोज पर रहती है। दो साल पहले उन्होंने यूट्यूब पर एक वीडियो देखा जिसमें एक मशीन के बारे में बताया गया था। मशीन से गाय के गोबर से लकड़ी बनाई जा रही थी। यह वीडियो देख कर सिंह काफी प्रभावित हुए। उन्होंने महसूस किया कि इससे बचे हुए कचरे से मूल्यवान वस्तु बनाई जा सकती है और साथ ही पेड़ों को कटने से बचाया जा सकता है जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सिंह ने इंटरनेट पर थोड़ा शोध किया और फिर अपने फैक्ट्री में इस मशीन को बना लिया।
प्रारंभिक मॉडल में गियरबॉक्स नहीं था, लेकिन कुछ टेस्टिंग और प्रतिक्रिया के बाद, सिंह और उनकी टीम ने 5 एचपी इलेक्ट्रिक मोटर और गियरबॉक्स के साथ गाय के गोबर से लकड़ी बनाने वाली मशीन बना ली है।
इस पूरी प्रक्रिया के बारे में विस्तार से बात करते हुए सिंह कहते हैं कि सबसे पहले 5 दिनों तक गाय के गोबर को धूप में सुखाया जाता है और उसमें मौजूद पानी को खत्म किया जाता है। गोबर को मिट्टी की तरह ढीला होना चाहिए। फिर, इसे बेलन के आकार वाली लकड़ी के पट्टे की तरह बनाने के लिए इनलेट में डाला जाता है। आवश्यकता के आधार पर आकार और माप में बदलाव किए जा सकते हैं। सिंह ने जो इनलेट तैयार किया है उसकी संरचना गोल और बेलन के आकार की है।
स्क्रू मैकेनिज्म के तहत मशीन कच्चे माल को सांचों में ढाल देती है। आवश्यकता के अनुसार सांचे को मशीन में ढाला जा सकता है। एक बार मशीन से बाहर निकाले जाने के बाद, गाय के गोबर की लकड़ी को धूप में सूखाया जाता है ताकि किसी भी तरह की नमी या गंध ना रहे।
लकड़ी की मजबूती सूखने पर बढ़ती है। यह मशीन एक मिनट में 3 फीट लंबी लकड़ी बना सकती है। इस इको-फ्रेंडली इनोवेशन की एक और खास बात यह है कि बायोगैस इकाइयों से घोल ( घोल और पुआल अवशेषों का एक संयोजन बनाकर ) का उपयोग भी किया जा सकता है। सिंह कहते हैं कि इस लकड़ी का इस्तेमाल जलावन के आलावा अन्य काम में भी किया जा सकता है।
मोहम्मद गुलफाम मेरठ में रहते हैं और डेयरी किसान हैं। उनके पास 23 भैंस और 7 गाय हैं, जो रोजाना एक क्विंटल कचरे का उत्पादन करते हैं। उन्होंने 5 महीने पहले यह मशीन खरीदी है। वह कहते हैं, “यह मशीन मेरे लिए वरदान की तरह है, क्योंकि यह कचरे को उपयोगी सामान में ढाल देता है। हमें लगभग 40 किलो गोबर रोज मिलता है, जिसे हम इस मशीन के ज़रिए लकड़ी में बदलते हैं। यह बेहद उपयोगी है और हर दूसरे दिन उस लकड़ी को हमारे खेत से ही बेचा जाता है। गाय के गोबर से बनाए गए लकड़ी से मैं हर महीने 8,400 रुपये कमाता हूं। मशीन के लिए 80,000 रुपये का शुरुआती निवेश का आधा हिस्सा पहले ही वसूल चुका हूँ। ”
सिंह कहते हैं, “शहरी क्षेत्रों के लोग अक्सर महसूस नहीं करते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकांश आबादी अभी भी जलावन के लिए लकड़ी पर निर्भर करता है। यह उनके लिए ऊर्जा का मुख्य स्रोत है और इसकी कमी भी है। यहां तक कि श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार के लिए जलावन का ही इस्तेमाल होता है। ऐसे में गोबर से लकड़ी बनाकर हम न केवल अपशिष्ट प्रबंधन कर रहे हैं बल्कि लकड़ी का एक बढ़िया विकल्प बनाने में भी मदद कर रहे हैं। इसके अलावा इस लकड़ी की एक खासियत यह है कि गोबर की वजह से यह थोड़ी खोखली होती है, जिससे ऑक्सिजन पास होता है, जिस वजह से इसमें तुरंत आग लग जाती है और धुंआ कम होता है।”
मशीन की कीमत जीएसटी के साथ 80,000 रुपये है। सिंह कहते हैं, “यह सही समय है जब लोगों को इस तरह से स्थायी तरीकों को समझना और अपनाना चाहिए। मवेशी से मिलने वाला दूध ही नहीं बल्कि इनसे उत्पन्न होने वाला कचरा भी बहुत उपयोगी हो सकता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। पर्यावरण और अर्थव्यवस्था की बेहतरी के लिए इस तरह के काम में हर किसी को अपना योगदान देना चाहिए।”
input:indiatimes