PATNA-आखिरी राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का बचपन राजा की तरह गुजरा, अंतिम समय गुमनामी में बीता, राजकुमार के लिए इंगलैंड से आती थीं किताबें, कोलकाता की एजेंसी ले जाती थी, 1944 में हुआ था यज्ञेश्वर सिंह का जन्म : दरभंगा राज के आखिरी राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह का बचपन राजा महाराजा की तरह एशो-आराम में गुजरा। लेकिन राज के अंतिम महाराजा कामेश्वर सिंह के 1962 में निधन के साथ ही इन्हें विषम परिस्थितियों से गुजरना पड़ा, जो अंतिम सांस लेने तक रही।
दरभंगा राज के संबंध में गहरी ताल्लुकात रखने वाले व दरभंगा राज के चित्रों पर शोध करने वाले एवं इस्मात फाउंडेशन के ट्रस्टी संतोष कुमार के मुताबिक, कामेश्वर सिंह के निधन के बाद राजकुमार यज्ञेश्वर सिंह की जिंदगी ने नया मोड़ ले लिया। इन्हें मुफलिसी की जिंदगी बितानी पड़ी। क्योंकि कामेश्वर सिंह के निधन के बाद उनकी वसीयतनामा के मुताबिक दरभंगा राज की सारी संपत्ति ट्रस्ट के हवाले हो गई। इससे उनको काफी मानसिक धक्का लगा। यूरोपियन गेस्ट हाउस से बेदखल किए जाने के बाद 1988 से उन्होंने गिरींद्र मोहन रोड स्थित आवास पर अपने शेष जीवन का निर्वहन किया।
1944 में हुआ था यज्ञेश्वर सिंह का जन्म
बताया जाता है कि यज्ञेश्वर सिंह का जन्म 5 जनवरी 1944 को विलास पैलेस में हुआ, जो वर्तमान में पीटीसी पोस्टल ट्रेनिंग सेंटर के रूप में जाना जाता है। 1965 तक वे इसी पैलेस में रहे। जब सरकार ने इस पैलेस का अधिग्रहण कर लिया, तब यहां से उन्हें जाना पड़ा। इसके बाद वे यूरोपियन गेस्ट हाउस चले गए।
यज्ञेश्वर सिंह ने किताबों के साथ बिताई गुमनाम जिंदगी
शोधार्थी संतोष कुमार के मुताबिक, यज्ञेश्वर सिंह किताब के बड़े शौकीन थे। किताब पढ़ने में उनकी गहरी रूचि थी। उन्होंने गुमनाम की जिंदगी किताब पढ़ कर बिताई। राजा कामेश्वर सिंह ने इंगलैंड में एक फाउंडेशन की स्थापना की थी। यहां से उन्हें पढ़ने के लिए किताबें आती थीं। इतना ही कोलकाता की एक एजेंसी पढ़ी किताबें ले जाती थीं। वे अपने में सीमित रहे। बाहरी दुनिया को कोई मतलब नहीं था। उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण भी कराया, जिसमें ‘प्रिंस’, ‘गूंज उठी शहनाई’, ‘राजकुमार’, ‘झुक गया आसमान’ आदि प्रमुख है।
Input: Daily Bihar