अद्भुत है FEVICOL के मालिक की कहानी, चपरासी की नौकरी से 1000 करोड़ की कंपनी तक का सफर करता है प्रेरित

अपनी फूटी किस्मत को वही लोग कोसते हैं, जिन्हें खुद पर भरोसा नहीं होता और मेहनत करने से कतराते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है की इंसान लगन और मेहनत के बलबूते सब कुछ पा सकता है। आपने हमेशा विज्ञापन देखा होगा फेविकॉल का। फेविकॉल (Fevicol) एक बड़ा ब्रॉन्ड है, जिसका उपयोग लगभग हर घर में हुआ है और किया जाता है।

 

भारत में ग्लू बनाने वाली इस कंपनी की स्टोरी इन विज्ञापनों से भी कही ज्यादा प्रेरणादाई है। इस कंपनी के मालिक बलवंत पारेख की कहानी (Balvant Parekh Story) आपको इतना मोटिवेट कर सकती है की आप भी कुछ ऐसा बड़ा करने का मन बना लेंगे। कभी चपरासी (Peon Job) का काम करने वाले बलवंत पारेख आज फेविकॉल कंपनी के मालिक (Fevicol Company Owner) है। उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर सफलता की कहानी (Success Story) गढ़ दी।

बलवंत पारेख उन कुछ उद्योगपतियों में से थे, जिन्होंने आजाद भारत की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में अपना अहम् सहयोग दिया। आज उनका परिवार और उनकी कंपनी अरबों की सानी है, परन्तु बलवंत पारेख (Balvant Parekh) के लिए यह सफर काफी मुश्किल भरा था।

 

 

 

 

 

शर्माइन का सोफ़ा विज्ञापन बड़ा फेमस है

 

बीते दिनों आपको टीवी पर विज्ञापन देखा होगा की ‘शर्माइन का सोफ़ा’, जो काफी फेमस हुआ है। शर्माइन का ये सोफ़ा मिश्राइन का हुआ, कलक्ट्राइन का हुआ और फिर बंगालन का हुआ। अर्थात ये सोफ़ा 60 साल तक पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा और इसका कारण था फेविकॉल का मजबूत जोड़। वही फेविकोल जिसके बारे में कहा जाता है ‘ये फेविकोल का जोड़ है, टूटेगा नहीं।’ फेविकोल का मजबूत जोड़ इतना पक्का है की तब से आज भी ग्राहक इससे जुड़े हुए हैं।

 

इस मजबूत जोड़ को भारत में स्थापित करने वाले बलवंत पारेख थे। उन्हें सम्मान के तौर पर उन्हें ‘फेविकोल मैन’ के नाम से भी कहा गया। फेविकोल बलवंत पारेख द्वारा स्थापित पिडिलाइट कंपनी का ही प्रोडक्ट है। फेविकोल के साथ ही यह कंपनी एम-सील, फेवि क्विक तथा डॉ फिक्सइट जैसे प्रोडक्ट बनाती है। यह सब भारत में काफी इस्तेमाल किये जाते है।

 

 

सबकुछ छोड़कर वे महात्मा गाँधी के आंदोलन में कूद पड़े

 

उस वक़्त लगभग पूरे देश पर महात्मा गांधी के विचारों में देश की जनता लीन थी। उनके द्वारा शुरू किए गए भारत छोड़ो आंदोलन में देश के युवा अपने भविष्य को झोंकने के लिए कूद रहे थे। बलवंत पारेख भी उन्हीं युवाओं में से एक थे और लाइन में लग गए। वह भी अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर इस आंदोलन का हिस्सा बन गए।

 

अपने होम टाउन में रहते हुए बलवंत पारेख ने कई आंदोलनों में भाग लिया। इस तरह एक साल निकल गया। बाद में गाँधी जी की बातें ठंडी होने पर बलवंत ने फिर से वकालत की पढ़ाई शुरू की और इसे पूरा किया। अब वे एक युवा वकील बन गए थे।

 

उन्हें वकालत का काम रास नहीं आया

 

अब उन्होंने लॉ की प्रेक्टिस शुरू की, लेकिन बलवंत पारेख ने इसके लिए मना कर दिया। वह वकील नहीं बनना चाहते थे। बलवंत पर महात्मा गांधी के विचार फिर से हावी हो गए। वह अब सबसे ज्यादा सत्य और अहिंसा को महत्व दे रहे थे। उनका मानना था कि वकालत एक झूठ का फरेब का काम है। यहां हर बात पर झूठ बोलना पड़ता है।

 

महात्मा गाँधी भी वकील होते हुए वकालत के पेशे में नहीं थे। यही वजह रही कि इन्होंने वकालत नहीं की। उन्होंने पढ़ाई के दौरान शादी कर ली थी और अब पत्नी की जिम्मेदारी भी उनके ऊपर ही थी। ऐसे में बलवंत पारेख ने एक डाइंग और प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी कर ली। नौकरी में बलवंत पारेख का मन नहीं लग रहा था, क्योंकि वह खुद का कोई व्यापार करना चाहते थे, परन्तु उनकी परिस्थितियां उन्हें ऐसा नहीं करने दे रही थीं।

लकड़ी व्यापारी के कार्यालय में चपरासी (Peon) की Job की

 

थोड़े वक़्त तक प्रिंटिंग प्रेस में काम करने के बाद उन्होंने एक लकड़ी व्यापारी के कार्यालय में चपरासी (Peon) की नौकरी की। बलवंत को अपनी चपरासी की नौकरी के दौरान कार्यालय के गोदाम में रहना पड़ाता था। वह यहां अपनी पत्नी के साथ अपनी गृहस्थी चला रहे थे।अच्छी बात यह थी कि प्रिंटिंग प्रेस से लेकर लकड़ी व्यापारी के यहां काम करने तक वह कुछ ना कुछ सीखते रहे।

 

 

चपरासी की नौकरी के बाद उन्होंने बहुत सी नौकरियां चेंज की और उसके अलावा अपने संपर्क को भी बढ़ाया। इन्हीं संपर्कों के ज़रिये बलवंत को जर्मनी जाने का मौका भी मिला। अपनी इस विदेश यात्रा के दौरान उन्होंने व्यापार से जुड़ी वो खास और नई बातें सीखीं जिससे आगे चल कर इन्हें बहुत फायदा मिला।

 

बलवंत को मेहनत का फल मिला और उन्होंने अपने बिजनेस करने के सपने को पूरा करने के अलावा उन्हें अपने आइडिया के लिए निवेशक भी मिल गया था। उन्होंने पश्चिमी देशों से साइकिल, एक्स्ट्रा नट्स, पेपर डाई इत्यादि आयात करने का बिजनेस शुरू किया। इसके बाद वह किराये के घर से निकल कर अपने परिवार के साथ एक फ्लैट में रहने लगे। उनका व्यापार अच्छा चल रहा था, मगर उन्हें और अधिक ज़बरदस्त काम करना था।

खोजा बीनी करने के बाद उन्हें गोंद बनाने का तरीका मिला

 

बहुत सोचने और खोजा बीनी करने के बाद उन्हें सिंथेटिक रसायन के प्रयोग से गोंद बनाने का तरीका मिल गया। इस तरह बलवंत पारेख ने अपने भाई सुनील पारेख के साथ मिल कर 1959 में पिडिलाइट ब्रांड की स्थापना की तथा पिडिलाइट ने ही देश को फेविकोल के नाम से सफेद और खुशबूदार गोंद दी।

 

आपको बता देखी फेविकोल में कोल शब्द का मतलब है, दो चीजों को जोड़ना। बलवंत पारेख ने यह शब्द जर्मन भाषा से लिया था। इसके अलावा जर्मनी में पहले से ही एक मोविकोल नामक कंपनी थी, वहां भी ऐसा ही गोंद बनाया जाता था। पारेख ने इस कंपनी के नाम से प्रेरित होकर अपने प्रोडक्ट का नाम फेविकोल रख दिया। फेविकोल ने लोगों की बहुत सी समस्याओं को सॉल्व कर दिया।

 

 

Input; Apna Bihar

 

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